तेरी अठखेलियों में, तेरी चुहलबाजी में,
तेरी पहेलियों में इक अदा निराली है,
मगर अफ़सोस तेरा वास्ता ऐसों से है,
पहेलियाँ जिनके सर से गुजरने वाली हैं.
हमसे आ पूछो कभी..'अगर मेरे बस में होता...
हम होते, तुम होते, आगोश में आलम होता,
मस्तियाँ भरता यों के थिरक उठती ये फिजा,
झूमता चूमता जुल्फों को ये हर पल होता.
आ के अब वादियाँ बुलाती हैं, मैं तुझे ले के कहीं दूर ....
माफ़ करना ये कितनी दूर निकल आया हूँ ख्यालों में,
सफ़र ऐसा भी कभी कितना मज़ा देता है.
जैसे रग-रग में कोई नशा-सा भर देता है.......
गुरुवार, 17 जून 2010
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