गुरुवार, 17 जून 2010

kaash hamse agar poochha hota......

तेरी  अठखेलियों में, तेरी चुहलबाजी में,
तेरी पहेलियों में इक अदा निराली है,
मगर अफ़सोस तेरा वास्ता ऐसों से है,
पहेलियाँ जिनके सर से गुजरने वाली हैं.

हमसे आ पूछो कभी..'अगर मेरे बस में होता...
हम होते, तुम होते, आगोश में आलम होता,
मस्तियाँ भरता यों के थिरक उठती ये फिजा,
झूमता चूमता जुल्फों को ये हर पल होता.

आ के अब वादियाँ बुलाती हैं,  मैं तुझे ले के कहीं दूर ....
माफ़ करना ये कितनी दूर निकल आया हूँ ख्यालों में,
सफ़र ऐसा भी कभी कितना मज़ा देता है.
जैसे रग-रग में कोई नशा-सा भर देता है.......