गुरुवार, 28 जनवरी 2010

talash-e- tanhai

किसी शायर ने कहा था,
"जिंदगी की राहों में रंजो-गम के मेले हैं,
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं."
लाख दोस्त-यार हों, हमराज़ हों, हमसफ़र हों या इक जीवन साथी.
दिल का कोई कोना फिर भी खाली क्यों रह जाता है.....
ये अकेलापन सबके साथ होने पर भी सिर्फ खुद तक क्यों सिमट के
रह जाता है.
तन्हाई भी अजब चीज़ है........ये  हो तो दिल घबराता है.
ना हो तो दिल इसे ढूंढता है. कितने रंग हैं इसके... किसी शायर से,
किसी कवि या लेखक से पूछो.
हम तन्हाई तलाश करते हैं खुद को संगीत में डुबोने के लिए.
 पर ये भी हर रोज़ कहाँ मिलती है.

शनिवार, 23 जनवरी 2010

Dhanyavaad Hydrabad

वाह रे हैदराबाद ...... इस बार क्या अनुभव दिया है जो हमेशा याद रहेगा...
राजनीतिकों द्वारा क्या-क्या हथकंडे टेंडरों को हथियाने के लिए अपनाए
जाते हैं ... प्रत्यक्ष अनुभव किया ... किसी कवि की लिखी हुई पंक्तिया अनायास
ही याद आ गई - "आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं,
                        महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी" .

शनिवार, 2 जनवरी 2010

RUCHIKA .....

रुचिका गिर्होत्रा केस आजकल अखबारों की सुर्ख़ियों में है.... राठौर को सजा सिर्फ ६
महीने ....और उसके भाई आशु को निरपराध होने पर भी पुलिसिया ज़ुल्म सहने
पढ़े ..... उसका करियर तबाह हो गया.... इस सबके लिए राठौर को कोई सजा नहीं.....
न्याय प्रक्रिया में कोई ऐसा प्रावधान नहीं जो राठौर को उसके गुनाहों की सजा दिला
सके.... सच ही कहा है कि सत्ता आदमी को भ्रष्ट करती है यदि इसका दुरुपयोग किया जाये.