रविवार, 3 जुलाई 2011

kuchh sawal.........

लोकपाल बिल पर अन्ना हजारे की राजनीतिक दलों से मुलाकात के क्रम में सोनिया गाँधी से मुलाकात शनिवार को हुई. अन्ना साहेब ने मुलाकात के बाद कहा कि लोकपाल विधेयक का सही मसविदा ही संसद में पेश किया जाना चाहिए. संसद जो भी फैसला करेगी हम उसका सम्मान करेंगे.
जो सांसद चुने जाने के बाद स्वयं को लोक-सेवक नहीं शासक मानते हैं, और जिनके रहते भ्रष्टाचार ने संस्थागत विकराल रूप धारण किया.. क्या अन्ना हजारे उन सांसदों का जो भी फैसला हो, स्वीकार करेंगे ? क्या आम जनता भी इसके लिए तैयार है ?  भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम शुरू हुई है, जनता जिस व्यवस्था-परिवर्तन कि आस में है .. क्या वो आस संसद की दहलीज़ पर ही दम तोड़ देगी ?  भ्रष्टाचार की सर्व-ग्राह्यता, व्यापकता इस लड़ाई को लम्बा बनाने जा रही है. संभवतः सन २०१४ के चुनाव इसी मुद्दे पर लड़े जायेंगे और उससे पहले सभी राजनीतिक पार्टियों की लोकपाल बिल पर संसद में मिलने वाली प्रतिक्रिया जनता के सामने उनके रुख को अधिक स्पष्ट करके रख देगी. सभी प्रमुख राजनीतिक दल सत्ता में रह चुके हैं, और अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी दल ने दृढ-इच्छाशक्ति का अभी तक परिचय नहीं दिया है. लेकिन आने वाले वक़्त में दो कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहें हैं. १. जनता की भ्रष्टाचार को दूर करने की दृढ-इच्छा और  २. सूचना तकनीक का प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए इस्तेमाल.
वक़्त रहते राजनीतिक दल जन-मानस की भावनाओं को समझ कर अगले चुनाव की तैयारी करें, ये एक मौका लोकपाल बिल संसद में उनको दे रहा है, जिस पर सारे देश की निगाहें रहेंगी. कौन इतिहास बनाता है और कौन-कौन इतिहास का हिस्सा बनता है, सब निकट भविष्य में स्पष्ट होने जा रहा है.
देखिये ज़रा ध्यान से इतिहास को बनते हुए और इसमें आपकी क्या भूमिका या योगदान होगा... विचार कीजिए.