गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

ye waqt

ये वक़्त भी कितना ज़ालिम है, इसे चाहूं तो ये मिलता नहीं,
जब मिलता है तो लिखने को मेरे पास में कोई ख़याल नहीं,

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

meaow F M 104.8/ 5 a.m. to 7 a.m.

हे प्रेम धारा पार्वती राठौड़, हर सुबह ५ बजे आप जो भक्ति रस की धारा meaow F M चैनल १०४.८ पर बहाती हैं, क्या आप जानती हैं कि कितने लोग भक्ति रस में डूबते हैं और हम आपकी आवाज़ के रस में...... नहीं जानते कि आपके ज्ञान - ध्यान से कितनों का भला हो रहा है..... जानते हैं तो बस यही कि आपकी आवाज़ ने दीवाना बना रखा है.... सुनिए .... परलोक तो जब सुधरेगा तब सुधरेगा... मगर ये लोक तो आपकी मधुर वाणी के रस में डूब कर आनंदमय हो गया है...... सुबह ७ बजे के बाद अपने पास वक़्त नहीं होता कि आपको ४३५८१०४८ पर डायल करके बात कर सकें .......सुंदर  कार्यक्रम जारी रखियेगा .....

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

muddat hui......

आज फिर तुमसे मिलने को दिल चाहता है,
मुद्दत हुई मुलाकातों को बीते, इन तनहाइयों में यूँही जीते जीते,
खामोशियों में इन अश्कों को पीते.....
इन उदासियों से रिहा चाहता है, आज फिर तुमसे मिलने..........

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

sannata

प्रभाष जी पर पुण्य प्रसून वाजपेयी का लेख जनसत्ता के १९ नवम्बर के दैनिक में पढ़े . पत्रकारिता जगत में सत्य पर पैसे के वर्चस्व के खिलाफ अब कौन आवाज़ उठाने जा रहा है . वाजपेयी जी ने ठीक ही लिखा है ..... "अन्दर के दर्द को हम आपस में कह-सुन कर बाँट लेंगें पर बाहर जो सन्नाटा पसरा हुआ है उसे कौन तोड़ेगा ".... राजनीतिक आज़ादी के ६२ वर्षों बाद भी आर्थिक गुलामी की जंजीरों को हम तोड़ नहीं पायें हैं. उद्योगपति, राजनेता और भ्रष्ट नौकरशाह मिलकर जनता के शोषण में लगे हुए हैं. जिन पत्रकारों को जनता के सामने सच्चाई लानी चाहिए वो पैसा लेकर अपनी कलम को गिरवी रख रहें हैं. ऐसे हालात में प्रभाष जी एक अलख जगा रहे थे. पत्रकारों की नयी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की तरह दिशा निर्देशन कर रहे थे........ क्या प्रभाष जी पर ऐसे और जानकारी देनेवाले लेख या कोई पुस्तक मिलेगी ...... अब तलाश शुरू होती है..... सत्य की खोज ........ सत्य को जीना ... यही प्रभाष जी को सच्ची श्रधांजलि होगी ............

रविवार, 15 नवंबर 2009

kahaan hain aap.....


कहाँ हैं आप .... प्रभाष जोशी जी ...... उन पत्रकारों को अब कौन राह दिखायेगा जो पैसा लेकर ख़बरें छापते हैं.
जनसत्ता में अब आपका "कागद कारे " कालम रविवार को नहीं मिला करेगा. ऐसी बहुत सी बातें आपके निधन
से अधूरी  रह गयी हैं.... आपको  इस पाठक की श्रद्धांजलि ....... भगवान् आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे ........
पत्रकारिता जगत  में आपका नाम सदा आदर सम्मान के साथ लिया जायेगा.

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

wo ik shaam

वो इक शाम इस ज़हन से उतरती ही नहीं, झूमती गाती फिजा थिरकती हुई आयी.
हुस्न चमका, अदा चमकी, धड़कने दिल की बढ़ी.... पैरों में थिरकन आयी.
या खुदा ... प्यास ये कैसी जगाई है तूने, रक्स फिर हुस्न-ए-परी का दिखा दे.
फिर वो महफिल सजे, फिर रक्स हो, फिर झूमे ये दिल. अब तो ऐसा कोई मौका बना दे.

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

फिर तेरी याद आयी......

आज मुद्दतों बाद फिर तेरी याद आयी। जगजीत सिंह की ग़ज़ल जो तुम्हारी भी मनपसंद हुआ करती थी... आज सुन रहा था। "ये दौलत भी ले लो.. ये शोहरत भी ले लो "....... दूसरी ग़ज़ल .... अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको , मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको....... फिर वोही लम्हे बड़ी शिद्दत से याद आए।
यादें भी अपने साथ बहा ले जाती हैं।
मिलोगे कभी तो जुदाई का सबब पूछेंगे, क्या यही तकदीर थी मेरी... ज़रूर पूछेंगे।
जुदा होना था गर हमको तो हम मिले क्यूं the ek baar tumse zaroor puchhenge.

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

क्या बताया जाए.......

वक्त ना मिलना भी अखरता है क्या बताया जाए,
जिंदगी कितने खानों में बंटी है क्या बताया जाए
रिश्तों को जी रहा हूँ ...जिंदगी कब जी हमने,
रंज कितने हैं, खुशी कितनी क्या बताया जाए.

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

एक संदेश......

अभी कुछ दिनों के लिए यात्रा पर ........ जल्दी फिर मुलाकात होगी ... नए नए अनुभवों के साथ।

बुधवार, 30 सितंबर 2009

ये ज़रूरी तो नहीं

बच्चे हमेशा अव्वल ही आयें ....... ये ज़रूरी तो नहीं। पढ़ाई ज़रूरी है लेकिन क्या पढ़ाई के साथ और भी काम ज़रूरी नहीं। जैसे.... खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सेहत। बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। आजकल ये अनुभव हो रहा है कि बच्चों से ज़्यादा अभिभावकों को पेरेंटिंग सीखने कि ज़रूरत है। क्यों आप क्या सोचते हैं .......... बताईये ना .... स्वागत है आपके विचारों का।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

और मैं सोच रहा हूँ.......२

पैसे के लिए.... क्या संवेदन शून्य हो जाना सही है ? जिसे जितने ज़्यादा नियम-कानूनों की जानकारी है वो इसका इस्तेमाल ग़लत तरीके से दूसरों का शोषण करके पैसा बनाने में ही क्यों करता है?
जितने बड़े प्रोफेशनल ....... उतने ही बड़े शोषक।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है ..... "आँख जो कुछ देखती है लबपे आ सकता नहीं, महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी"।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

Aur main soch raha hoon...........

ये मोबाइल वक्त बेवक्त कभी भी बज उठता है। मोटर साइकिल साइड लगाई और मोबाइल कॉल सुनी साईट से कॉल थी के आज लेबर काम नही कर रही। आप के इंतज़ार में बैठी है सरकारी बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था वो भी सरकारी गति से धीरे-धीरे। साईट पहुँच कर लेबर से पूछा तो मालूम हुआ की लेबर ठेकेदार ने कम भुगतान किया है । लेबर चाहती है की मैं ठेकेदार से बकाया दिलवाने में उनकी मदद करूँ। लेबर सप्लाएर अपनी सुनता था सो उससे बात की। वो बकाया राशिः के भुगतान के लिए तैयार हो गया। काम चालू हो गया।

यही कोई आधे घंटे के बाद संदेश मिला कि श्रम विभाग से सहायक श्रम आयुक्त साईट के औचक निरीक्षण के लिए

आए हैं। सभी उपठेकेदारों की लेबर को बुलाया है । अब दृश्य बदल गया। ठेकेदार अपनी लेबर को पाठ पढ़ा कर श्रम आयुक्त के दरबार में एक एक कर के भेजने लगे। बोलना मजदूरी १८० रूपये मिलती है। ८ घंटे की ड्यूटी है। " लेकिन आप तो १३० रूपये दिहाड़ी देते हो " - लेबर बोला। बाद में देखेंगे , अभी जो कहा है वही कर।

तोते की तरह श्रम आयुक्त के सामने जो पढाया गया था मजदूर बोल आए। पूछने पर जवाब मिला ऐसा न करते तो ठेकेदार काम से हटा देता और मैं सोच .........