तेरी अठखेलियों में, तेरी चुहलबाजी में,
तेरी पहेलियों में इक अदा निराली है,
मगर अफ़सोस तेरा वास्ता ऐसों से है,
पहेलियाँ जिनके सर से गुजरने वाली हैं.
हमसे आ पूछो कभी..'अगर मेरे बस में होता...
हम होते, तुम होते, आगोश में आलम होता,
मस्तियाँ भरता यों के थिरक उठती ये फिजा,
झूमता चूमता जुल्फों को ये हर पल होता.
आ के अब वादियाँ बुलाती हैं, मैं तुझे ले के कहीं दूर ....
माफ़ करना ये कितनी दूर निकल आया हूँ ख्यालों में,
सफ़र ऐसा भी कभी कितना मज़ा देता है.
जैसे रग-रग में कोई नशा-सा भर देता है.......
गुरुवार, 17 जून 2010
रविवार, 23 मई 2010
manaa lo unko ..........
कोई भी ज़ख्म... गुनाह ज़िन्दगी से बड़ा नहीं,
दिल बड़ा करके अपनों को बुला लो यारों.
प्यार जिनसे है खता मुआफ उनकी कर भी दो,
प्यार से दूर होने की सजा खुद को ना दो यारों.
दिल बड़ा करके अपनों को बुला लो यारों.
प्यार जिनसे है खता मुआफ उनकी कर भी दो,
प्यार से दूर होने की सजा खुद को ना दो यारों.
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010
बुधवार, 24 मार्च 2010
mehar barsi hai yaron............
खबर आयी है ... छप्पर अचानक फंट गया यारो,
के बिन बादल अचानक खूब मेहर बरसी है यारों,
गिला कैसा कि फिर बंटी पंचों को सौगात है यारों.
जितनी झोली थी मिली उतनी ही सौगात है यारों.
खुदा का शुक्रिया कर दो अदा, कुछ जश्न हो जाए,
सुरूर छा जाये फिजा पर... हवा में जाम लहरायें.
के बिन बादल अचानक खूब मेहर बरसी है यारों,
गिला कैसा कि फिर बंटी पंचों को सौगात है यारों.
जितनी झोली थी मिली उतनी ही सौगात है यारों.
खुदा का शुक्रिया कर दो अदा, कुछ जश्न हो जाए,
सुरूर छा जाये फिजा पर... हवा में जाम लहरायें.
javaabdehi............
हर साल योजनाओं के नाम पर सरकार द्वारा
आबंटित धन का कितना बड़ा हिस्सा अनुपयोगी
रह जाता है और कितना दुरुपयोग का शिकार हो
जाता है यह देखने की सरकारें जहमत नहीं उठाती
और विदेशों से ऋण लेती हैं..... योजनाओं के लिए
स्वीकृत धनराशी घोषित लक्ष्य के अनुरूप हो रही
है या नहीं ..... वे यह देखने की जहमत नहीं उठाती.
योजनायें बनाना ही काफी नहीं है... उन पर अमल
की प्रक्रिया भी हर स्तर पर पारदर्शी, लक्ष्यबद्ध और
जवाबदेही से पूर्ण होनी चाहिए.
आबंटित धन का कितना बड़ा हिस्सा अनुपयोगी
रह जाता है और कितना दुरुपयोग का शिकार हो
जाता है यह देखने की सरकारें जहमत नहीं उठाती
और विदेशों से ऋण लेती हैं..... योजनाओं के लिए
स्वीकृत धनराशी घोषित लक्ष्य के अनुरूप हो रही
है या नहीं ..... वे यह देखने की जहमत नहीं उठाती.
योजनायें बनाना ही काफी नहीं है... उन पर अमल
की प्रक्रिया भी हर स्तर पर पारदर्शी, लक्ष्यबद्ध और
जवाबदेही से पूर्ण होनी चाहिए.
शनिवार, 20 मार्च 2010
ab guzarish kaisi..........
इक गुज़ारिश ही जब ना पूरी हुई,
दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
नाव भला भंवर से बचती कैसे.
यूँ तो हर कोई तेरे साथ की चाहत है लिए,
पर तेरा साथ कोई खुश-नसीब पायेगा.
रज़ा तेरी जहाँ होगी खिलेंगे फूल वहीँ,
रश्क से ये जहाँ खुद ही जल जायेगा.
दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
नाव भला भंवर से बचती कैसे.
यूँ तो हर कोई तेरे साथ की चाहत है लिए,
पर तेरा साथ कोई खुश-नसीब पायेगा.
रज़ा तेरी जहाँ होगी खिलेंगे फूल वहीँ,
रश्क से ये जहाँ खुद ही जल जायेगा.
सोमवार, 15 मार्च 2010
Jan dayitva vidheyak...... Ek nazar....
जन दायित्व विधेयक सरकार आज संसद में पेश करेगी.
क्या है ये... परमाणु संयंत्र उपलब्ध कराने वाली
अमेरिकी कंपनियों को सरकार इस विधेयक के जरिये
परमाणु दुर्घटना की हालत में कुल मुआवज़े की राशि
को ५०० करोड़ तक सीमित कर देना चाहती है. किसी
भी सूरत में परमाणु सयंत्र चलाने वाली कम्पनी को
५०० करोड़ से ज्यादा मुआवजा नहीं देना पड़ेगा.कम्पनी
की सीमा के बाहर की राशी का भुगतान भारत सरकार
करेगी. जब तक ऐसा नहीं होगा अमेरिकी कम्पनियाँ
भारत में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र नहीं
लगाएंगी.
सवाल है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में होनेवाले
नुकसान को सीमित क्यों किया जाए. तथ्य ये है कि
१९८४ में हुए भोपाल गैस काण्ड में मिली रकम का ये
एक चौथाई भी नहीं है. क्या भारतीयों की जान की
कीमत सरकार की नज़र में सस्ती है.
खुद अमेरिका ने अपने देश की कंपनियों को ये छूट
नहीं दे रखी है.वहां प्राईस anderson एक्ट १९५६ के
जरिये परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवज़े का प्रावधान
किया गया है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती.
दुर्घटना की स्थिति में हमारी अदालत का फैसला होगा
लेकिन उस पर अमल अमेरिकी सरकार करवाएगी.
अमेरिका इस मामले में कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा
इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी
के लिए ज़िम्मेदार कम्पनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख
वारेन एंडरसन को भारत की तमाम कोशिशों व अदालती
वारंट के बावज़ूद आजतक भारत को सौंपा नहीं गया है.
प्रस्तावित विधेयक में ये भी कहा गया है कि दुर्घटना होने
पर सम्बंधित कम्पनी कि ज़िम्मेदारी महज दस साल तक
ही सीमित होगी. जबकि सब जानते हैं कि विकिरण के कारण
कई पीढियां तक प्रभावित हो जाती हैं.
ओबामा प्रशासन बाग़-बाग़ है कि भारत सरकार के इस फैसले
से अमेरिका के लिए नौकरियों के स्त्रोत खुलेंगे और उनकी
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाला ही
उसकी भरपाई करेगा. ऐसे में सरकार कैसे मुआवज़े और भरपाई
की सीमा तय कर सकती है.
ये विधेयक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक अहम् सुरक्षा
कवच होगा. सरकार इस जनविरोधी विधेयक को जन
दायित्व विधेयक के नाम से संसद में लाना चाहती है...
संसद में और संसद के बाहर इसका विरोध होना ज़रूरी
है. आप क्या सोचते हैं..... आपके विचार आमंत्रित हैं.
क्या है ये... परमाणु संयंत्र उपलब्ध कराने वाली
अमेरिकी कंपनियों को सरकार इस विधेयक के जरिये
परमाणु दुर्घटना की हालत में कुल मुआवज़े की राशि
को ५०० करोड़ तक सीमित कर देना चाहती है. किसी
भी सूरत में परमाणु सयंत्र चलाने वाली कम्पनी को
५०० करोड़ से ज्यादा मुआवजा नहीं देना पड़ेगा.कम्पनी
की सीमा के बाहर की राशी का भुगतान भारत सरकार
करेगी. जब तक ऐसा नहीं होगा अमेरिकी कम्पनियाँ
भारत में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र नहीं
लगाएंगी.
सवाल है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में होनेवाले
नुकसान को सीमित क्यों किया जाए. तथ्य ये है कि
१९८४ में हुए भोपाल गैस काण्ड में मिली रकम का ये
एक चौथाई भी नहीं है. क्या भारतीयों की जान की
कीमत सरकार की नज़र में सस्ती है.
खुद अमेरिका ने अपने देश की कंपनियों को ये छूट
नहीं दे रखी है.वहां प्राईस anderson एक्ट १९५६ के
जरिये परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवज़े का प्रावधान
किया गया है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती.
दुर्घटना की स्थिति में हमारी अदालत का फैसला होगा
लेकिन उस पर अमल अमेरिकी सरकार करवाएगी.
अमेरिका इस मामले में कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा
इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी
के लिए ज़िम्मेदार कम्पनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख
वारेन एंडरसन को भारत की तमाम कोशिशों व अदालती
वारंट के बावज़ूद आजतक भारत को सौंपा नहीं गया है.
प्रस्तावित विधेयक में ये भी कहा गया है कि दुर्घटना होने
पर सम्बंधित कम्पनी कि ज़िम्मेदारी महज दस साल तक
ही सीमित होगी. जबकि सब जानते हैं कि विकिरण के कारण
कई पीढियां तक प्रभावित हो जाती हैं.
ओबामा प्रशासन बाग़-बाग़ है कि भारत सरकार के इस फैसले
से अमेरिका के लिए नौकरियों के स्त्रोत खुलेंगे और उनकी
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाला ही
उसकी भरपाई करेगा. ऐसे में सरकार कैसे मुआवज़े और भरपाई
की सीमा तय कर सकती है.
ये विधेयक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक अहम् सुरक्षा
कवच होगा. सरकार इस जनविरोधी विधेयक को जन
दायित्व विधेयक के नाम से संसद में लाना चाहती है...
संसद में और संसद के बाहर इसका विरोध होना ज़रूरी
है. आप क्या सोचते हैं..... आपके विचार आमंत्रित हैं.
शनिवार, 13 मार्च 2010
Let's uncomplicate...... Dimple Kapadia.
१२ मार्च के एच टी सिटी में डिम्पल कपाड़िया
का रिलेशनशिप पर लेख पढ़ा. एक सुखद आश्चर्य
हुआ. अदाकारी और खूबसूरती फिल्मों में तो खूब
देखी थी.... लेकिन लेख पढ़ने के बाद तो वैचारिक
खूबसूरती के भी दर्शन हुए. किसी शायर की ये
पंक्तियाँ बरबस याद आ गयी...
"ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
बहुत मुमकिन है तुझे किन्ही खराबों में मिले"
उतार-चढ़ावों से भरपूर जिंदगी जीनेवाली डिम्पल
के.... संबंधों पर विचार सुलझे हुए और मार्गदर्शक
हैं. वे लिखती हैं... "Lets give ourselves a chance
again, a chance to reconnect with people, a
chance to forge relationships and be happy.
These are the people who matter; they are
in our thoughts, in our minds & in our hearts.
We should not take them for granted because
if we loose them..... it could be too late.
Never apologise for showing your feelings.
When you do so,you apologise for expressing
the truth. People we love are special and we
should never apologise for trying to reconnect
with them."
This column will appear every Friday in HT City.
Anybody can send their real life stories to.....
dimple.kapadia@hindustantimes.com & she
may help you reunite with your loved ones.
Her film, तुम मिलो तो सही releases on April 2.
का रिलेशनशिप पर लेख पढ़ा. एक सुखद आश्चर्य
हुआ. अदाकारी और खूबसूरती फिल्मों में तो खूब
देखी थी.... लेकिन लेख पढ़ने के बाद तो वैचारिक
खूबसूरती के भी दर्शन हुए. किसी शायर की ये
पंक्तियाँ बरबस याद आ गयी...
"ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
बहुत मुमकिन है तुझे किन्ही खराबों में मिले"
उतार-चढ़ावों से भरपूर जिंदगी जीनेवाली डिम्पल
के.... संबंधों पर विचार सुलझे हुए और मार्गदर्शक
हैं. वे लिखती हैं... "Lets give ourselves a chance
again, a chance to reconnect with people, a
chance to forge relationships and be happy.
These are the people who matter; they are
in our thoughts, in our minds & in our hearts.
We should not take them for granted because
if we loose them..... it could be too late.
Never apologise for showing your feelings.
When you do so,you apologise for expressing
the truth. People we love are special and we
should never apologise for trying to reconnect
with them."
This column will appear every Friday in HT City.
Anybody can send their real life stories to.....
dimple.kapadia@hindustantimes.com & she
may help you reunite with your loved ones.
Her film, तुम मिलो तो सही releases on April 2.
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
ik guzarish.........
मैंने प्यार किया तुझसे सजना,
तुझको सारी दुनिया प्यारी,
दो पल के साथ को तरसाए,
तू ही है मेरी दुनिया सारी.
आ पास मेरे कुछ बात करें,
रिश्ते को कुछ गर्माहट दें,
कुछ वक़्त निकालें फिर अपना,
फिर प्यार में ही खो जाने दें.
तुझको सारी दुनिया प्यारी,
दो पल के साथ को तरसाए,
तू ही है मेरी दुनिया सारी.
आ पास मेरे कुछ बात करें,
रिश्ते को कुछ गर्माहट दें,
कुछ वक़्त निकालें फिर अपना,
फिर प्यार में ही खो जाने दें.
सोमवार, 8 मार्च 2010
ab door kahin........
दिल जो चाहे कि जी भर के तुझे प्यार करूँ,
वक़्त कमबख्त कितनी दूर किये देता है,
फ़र्ज़ की डोर खींच लेती है तुझसे दूर,
हर इक लम्हा मुझे तन्हा-सा किये देता है.
आ के अब दूर कहीं साथ साथ चलते हैं ,
यही ख़याल अब कितना सुकून देता है.
वक़्त कमबख्त कितनी दूर किये देता है,
फ़र्ज़ की डोर खींच लेती है तुझसे दूर,
हर इक लम्हा मुझे तन्हा-सा किये देता है.
आ के अब दूर कहीं साथ साथ चलते हैं ,
यही ख़याल अब कितना सुकून देता है.
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
didar ki hasrat liye........
जिंदगी यूँ तो पल-पल सरकती जाती है,
तेरी यादों के पल ही क्यूं ठहर जाते हैं,
अब तो होठों से नगमे भी यार रुसवा हैं,
तेरी जुदाई में इक आस फिर जगाते हैं.
आ के अब फिर से दे दीदार इक बार,
वरना यादों की महफ़िल फिर सजाते हैं.
तेरी यादों के पल ही क्यूं ठहर जाते हैं,
अब तो होठों से नगमे भी यार रुसवा हैं,
तेरी जुदाई में इक आस फिर जगाते हैं.
आ के अब फिर से दे दीदार इक बार,
वरना यादों की महफ़िल फिर सजाते हैं.
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
Zindgi......Ek khamosh safar
जिंदगी ... इक खामोश सफ़र जारी रहे,
बेचैन तनहाइयों का ये सफ़र जारी रहे,
तलाश मेरी थी पर इनायत तुझ पे हुई,
पिरोकर शब्दों के मोती ये सफ़र जारी रहे.
गुदगुदाता सा इक एहसास दिल को छू जाये,
नज़र से दूर....... है पर लफ्जों में नज़र आये,
जिस्म बेमानी लगे, रूह को करार आ जाये,
एक विरहन को जैसे उसका सजन मिल जाये,
ऐसी कविता में इक रवानी है,
भाव-सौंदर्य है....... जवानी है,
खुबसूरत-सी अनुभूतियों के हैं मंज़र,
रोपे हैं लफ्ज़ ऐसे... जैसे बागवानी है.
बेचैन तनहाइयों का ये सफ़र जारी रहे,
तलाश मेरी थी पर इनायत तुझ पे हुई,
पिरोकर शब्दों के मोती ये सफ़र जारी रहे.
गुदगुदाता सा इक एहसास दिल को छू जाये,
नज़र से दूर....... है पर लफ्जों में नज़र आये,
जिस्म बेमानी लगे, रूह को करार आ जाये,
एक विरहन को जैसे उसका सजन मिल जाये,
ऐसी कविता में इक रवानी है,
भाव-सौंदर्य है....... जवानी है,
खुबसूरत-सी अनुभूतियों के हैं मंज़र,
रोपे हैं लफ्ज़ ऐसे... जैसे बागवानी है.
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010
waqt mil jaye.....
वक़्त मिल जाये भी तो रचनात्मकता के लिए
कल्पना कि उड़ान कहाँ मिलती है. एक तन्हाई
कि तलाश बनी ही रहती है. अवरोध-व्यवधान
आते ही रहते हैं. फिर भी ये दिल कहाँ मानता
है. आज वंदना गुप्ता जी का ब्लॉग पढने का
अवसर मिला. रचनात्मकता के लिए कितना
वक़्त निकाल लेती हैं आप. धन्य हैं आप.
फिर मिलेंगे आपके ब्लॉग पर.
कल्पना कि उड़ान कहाँ मिलती है. एक तन्हाई
कि तलाश बनी ही रहती है. अवरोध-व्यवधान
आते ही रहते हैं. फिर भी ये दिल कहाँ मानता
है. आज वंदना गुप्ता जी का ब्लॉग पढने का
अवसर मिला. रचनात्मकता के लिए कितना
वक़्त निकाल लेती हैं आप. धन्य हैं आप.
फिर मिलेंगे आपके ब्लॉग पर.
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
bas youn hi......
आज के बच्चों को हम क्या समझायें,
ये समझते हैं कि... समझदार हैं ये ,
अपनी मंजिल पे निगाह रखते हैं ये,
अपनी आदतों से भी लाचार हैं ये.
...................................................
किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता,
जहां में हूँ फरिश्तों से वहाँ आया नहीं जाता,
मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं,
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता.
ये समझते हैं कि... समझदार हैं ये ,
अपनी मंजिल पे निगाह रखते हैं ये,
अपनी आदतों से भी लाचार हैं ये.
...................................................
किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता,
जहां में हूँ फरिश्तों से वहाँ आया नहीं जाता,
मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं,
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता.
सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
ik bebasi........
या रब ना वो समझे हैं ... ना समझेंगे मेरी बात....
एहसास की वादी में सन्नाटा सा बहुत है........
इक दर्द सा क्यूं है सीने में, तेरी आँख का आंसू पीने में,
जिसे ख़ुशी तूने देनी चाही, वोही कांटे चुभोये सीने में.
वक़्त की नजाकत का जो एहसास नहीं है,
फेर समझ का है.. और दिल पास नहीं है,
चाहा था के खुशियों से झोली तेरी भर दूं,
फटकार के सिवा कुछ क्या तेरे पास नहीं है.
एहसास की वादी में सन्नाटा सा बहुत है........
इक दर्द सा क्यूं है सीने में, तेरी आँख का आंसू पीने में,
जिसे ख़ुशी तूने देनी चाही, वोही कांटे चुभोये सीने में.
वक़्त की नजाकत का जो एहसास नहीं है,
फेर समझ का है.. और दिल पास नहीं है,
चाहा था के खुशियों से झोली तेरी भर दूं,
फटकार के सिवा कुछ क्या तेरे पास नहीं है.
शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
We are with SRK.
राहुल गाँधी कि सफल मुंबई यात्रा के बाद अब शाहरुख को support कीजिये.
शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को बता दीजिये कि
मुंबई केवल मराठियों की नहीं समस्त भारतीयों की है. मुंबई प्रशासन को
'माय नेम इज खान' की रिलीज़ के समय चौकस इन्तेजाम रखने होंगे जैसे
राहुल गाँधी की यात्रा में किये गए ताकि शिवसेना और राज ठाकरे के कार्यकर्त्ता
फिल्म प्रदर्शन में कोई बाधा ना पहुंचा सके. अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता को बचाए
रखने के लिए ये ज़रूरी है.
शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को बता दीजिये कि
मुंबई केवल मराठियों की नहीं समस्त भारतीयों की है. मुंबई प्रशासन को
'माय नेम इज खान' की रिलीज़ के समय चौकस इन्तेजाम रखने होंगे जैसे
राहुल गाँधी की यात्रा में किये गए ताकि शिवसेना और राज ठाकरे के कार्यकर्त्ता
फिल्म प्रदर्शन में कोई बाधा ना पहुंचा सके. अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता को बचाए
रखने के लिए ये ज़रूरी है.
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
aawaaz buland karo
शिव सैनिकों द्वारा शाहरुख़ को पाकिस्तान जाने के लिए कहना और
मुंबई को केवल मराठियों के लिए मानना ..... शिवसेना का जनता
की भावनाओं को भड़काकर अपना वोट बैंक मज़बूत करना है......
शिवसेना के वर्चस्व से वाकिफ होते हुए भी सचिन ने मुंबई की आई
पी एल टीम का नाम मुंबई indians रखा तो इसकी एक वज़ह मराठियों
को भी भारतीय पहचान देना था. आज शिवसेना कभी शाहरुख़, कभी
राहुल गाँधी के विरोध में खड़ी है तो मुंबई के सभी भारतीयों को अपनी
आवाज़ शिवसेना के विरोध में बुलंद करनी होगी. ये सन्देश देना होगा
कि मुंबई में रहने वाले मराठी .... भारतीय पहले हैं फिर मराठी हैं.
मुंबई को केवल मराठियों के लिए मानना ..... शिवसेना का जनता
की भावनाओं को भड़काकर अपना वोट बैंक मज़बूत करना है......
शिवसेना के वर्चस्व से वाकिफ होते हुए भी सचिन ने मुंबई की आई
पी एल टीम का नाम मुंबई indians रखा तो इसकी एक वज़ह मराठियों
को भी भारतीय पहचान देना था. आज शिवसेना कभी शाहरुख़, कभी
राहुल गाँधी के विरोध में खड़ी है तो मुंबई के सभी भारतीयों को अपनी
आवाज़ शिवसेना के विरोध में बुलंद करनी होगी. ये सन्देश देना होगा
कि मुंबई में रहने वाले मराठी .... भारतीय पहले हैं फिर मराठी हैं.
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
bikhrav ki bayar....
आज तेलंगाना राज्य के समर्थन में आन्दोलन फिर उग्र हो गया... सरदार पटेल ने
सन १९४७ में तीन सौ से ज्यादा रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत का निर्माण
किया था... लेकिन अब लगता है कि भारत के बिखराव में ही राजनीतिकों की
दिलचस्पी रह गयी है....झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराँचल, और अब तेलंगाना.....
लिस्ट बढती ही जानी है. चौधरी अजित सिंह को हरित प्रदेश चाहिए ... मायावती
पश्चिमांचल और बुंदेलखंड की बात कर रही हैं तो दार्जिलिंग को गोरखालैंड चाहिए.
देखिये राजनीतिकों के स्वार्थ भारत के कितने टुकड़े करते हैं...?
यदि हर सांसद अपने क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाये और जनता की ज़रूरतों को ध्यान में
रखते हुए योजनाओं को क्रियान्वित करे तो भारत की अखंडता बनी रह सकती है......
yogyataon ka mol do kaudi
जनसत्ता एक फ़रवरी अंक में शंकर शरण जी का उपरोक्त शीर्षक से लेख पड़ा.
सही कहा है......देश की अनेक समस्याओं का समाधान इस छोटे से सूत्र में है-
सही स्थान पर सही व्यक्ति...यह पात्रता का अमोघ सिद्धांत है. नियम, अधिकार,
धन, तकनीक आदि सब मनुष्य द्वारा चालित होते हैं. अपने आप में वे कुछ नहीं
होते. इसलिए किसी विषय पर मात्र कानून पर कानून बना देने से कोई अंतर नहीं पड़ता.
मानवीय तत्त्व को भुला कर हम समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं. इसीलिए विफल होते हैं.
कोई उत्तरदायित्व देने से पहले पात्रता ना देखना ही समस्या का मूल है.
किसी भी नियुक्ति से पहले उम्मीदवार की चारित्रिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक
क्षमताओं की जांच परख की जानी चाहिए. केवल औपचारिक योग्यता, डिग्री, कागज़
या सिफारिश से संतोष नहीं करना चाहिए.
देश की समस्याओं से निबटने के लिए नागरिक प्रशासन, शिक्षा, आंतरिक सुरक्षा,
विदेश नीति संचालन आदि के महत्वपूर्ण स्थानों पर हमेशा योग्य, चरित्रवान और
निर्भीक व्यक्तियों की नियुक्तिओं की परिपाटी बनानी होगी. अगर इसे टाला गया तो
समय के साथ सब कुछ ना केवल असुरक्षित ही रहेगा. पतन का कारण भी बनेगा.
अपने मित्र रविराज जी के शब्दों में कहें तो.... "गधों को जलेबियाँ मत खिलाओ."
सही कहा है......देश की अनेक समस्याओं का समाधान इस छोटे से सूत्र में है-
सही स्थान पर सही व्यक्ति...यह पात्रता का अमोघ सिद्धांत है. नियम, अधिकार,
धन, तकनीक आदि सब मनुष्य द्वारा चालित होते हैं. अपने आप में वे कुछ नहीं
होते. इसलिए किसी विषय पर मात्र कानून पर कानून बना देने से कोई अंतर नहीं पड़ता.
मानवीय तत्त्व को भुला कर हम समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं. इसीलिए विफल होते हैं.
कोई उत्तरदायित्व देने से पहले पात्रता ना देखना ही समस्या का मूल है.
किसी भी नियुक्ति से पहले उम्मीदवार की चारित्रिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक
क्षमताओं की जांच परख की जानी चाहिए. केवल औपचारिक योग्यता, डिग्री, कागज़
या सिफारिश से संतोष नहीं करना चाहिए.
देश की समस्याओं से निबटने के लिए नागरिक प्रशासन, शिक्षा, आंतरिक सुरक्षा,
विदेश नीति संचालन आदि के महत्वपूर्ण स्थानों पर हमेशा योग्य, चरित्रवान और
निर्भीक व्यक्तियों की नियुक्तिओं की परिपाटी बनानी होगी. अगर इसे टाला गया तो
समय के साथ सब कुछ ना केवल असुरक्षित ही रहेगा. पतन का कारण भी बनेगा.
अपने मित्र रविराज जी के शब्दों में कहें तो.... "गधों को जलेबियाँ मत खिलाओ."
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
talash-e- tanhai
किसी शायर ने कहा था,
"जिंदगी की राहों में रंजो-गम के मेले हैं,
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं."
लाख दोस्त-यार हों, हमराज़ हों, हमसफ़र हों या इक जीवन साथी.
दिल का कोई कोना फिर भी खाली क्यों रह जाता है.....
ये अकेलापन सबके साथ होने पर भी सिर्फ खुद तक क्यों सिमट के
रह जाता है.
तन्हाई भी अजब चीज़ है........ये हो तो दिल घबराता है.
ना हो तो दिल इसे ढूंढता है. कितने रंग हैं इसके... किसी शायर से,
किसी कवि या लेखक से पूछो.
हम तन्हाई तलाश करते हैं खुद को संगीत में डुबोने के लिए.
पर ये भी हर रोज़ कहाँ मिलती है.
शनिवार, 23 जनवरी 2010
Dhanyavaad Hydrabad
वाह रे हैदराबाद ...... इस बार क्या अनुभव दिया है जो हमेशा याद रहेगा...
राजनीतिकों द्वारा क्या-क्या हथकंडे टेंडरों को हथियाने के लिए अपनाए
जाते हैं ... प्रत्यक्ष अनुभव किया ... किसी कवि की लिखी हुई पंक्तिया अनायास
ही याद आ गई - "आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं,
महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी" .
शनिवार, 2 जनवरी 2010
RUCHIKA .....
रुचिका गिर्होत्रा केस आजकल अखबारों की सुर्ख़ियों में है.... राठौर को सजा सिर्फ ६
महीने ....और उसके भाई आशु को निरपराध होने पर भी पुलिसिया ज़ुल्म सहने
पढ़े ..... उसका करियर तबाह हो गया.... इस सबके लिए राठौर को कोई सजा नहीं.....
न्याय प्रक्रिया में कोई ऐसा प्रावधान नहीं जो राठौर को उसके गुनाहों की सजा दिला
सके.... सच ही कहा है कि सत्ता आदमी को भ्रष्ट करती है यदि इसका दुरुपयोग किया जाये.
महीने ....और उसके भाई आशु को निरपराध होने पर भी पुलिसिया ज़ुल्म सहने
पढ़े ..... उसका करियर तबाह हो गया.... इस सबके लिए राठौर को कोई सजा नहीं.....
न्याय प्रक्रिया में कोई ऐसा प्रावधान नहीं जो राठौर को उसके गुनाहों की सजा दिला
सके.... सच ही कहा है कि सत्ता आदमी को भ्रष्ट करती है यदि इसका दुरुपयोग किया जाये.
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