बुधवार, 30 सितंबर 2009

ये ज़रूरी तो नहीं

बच्चे हमेशा अव्वल ही आयें ....... ये ज़रूरी तो नहीं। पढ़ाई ज़रूरी है लेकिन क्या पढ़ाई के साथ और भी काम ज़रूरी नहीं। जैसे.... खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सेहत। बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। आजकल ये अनुभव हो रहा है कि बच्चों से ज़्यादा अभिभावकों को पेरेंटिंग सीखने कि ज़रूरत है। क्यों आप क्या सोचते हैं .......... बताईये ना .... स्वागत है आपके विचारों का।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

और मैं सोच रहा हूँ.......२

पैसे के लिए.... क्या संवेदन शून्य हो जाना सही है ? जिसे जितने ज़्यादा नियम-कानूनों की जानकारी है वो इसका इस्तेमाल ग़लत तरीके से दूसरों का शोषण करके पैसा बनाने में ही क्यों करता है?
जितने बड़े प्रोफेशनल ....... उतने ही बड़े शोषक।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है ..... "आँख जो कुछ देखती है लबपे आ सकता नहीं, महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी"।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

Aur main soch raha hoon...........

ये मोबाइल वक्त बेवक्त कभी भी बज उठता है। मोटर साइकिल साइड लगाई और मोबाइल कॉल सुनी साईट से कॉल थी के आज लेबर काम नही कर रही। आप के इंतज़ार में बैठी है सरकारी बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था वो भी सरकारी गति से धीरे-धीरे। साईट पहुँच कर लेबर से पूछा तो मालूम हुआ की लेबर ठेकेदार ने कम भुगतान किया है । लेबर चाहती है की मैं ठेकेदार से बकाया दिलवाने में उनकी मदद करूँ। लेबर सप्लाएर अपनी सुनता था सो उससे बात की। वो बकाया राशिः के भुगतान के लिए तैयार हो गया। काम चालू हो गया।

यही कोई आधे घंटे के बाद संदेश मिला कि श्रम विभाग से सहायक श्रम आयुक्त साईट के औचक निरीक्षण के लिए

आए हैं। सभी उपठेकेदारों की लेबर को बुलाया है । अब दृश्य बदल गया। ठेकेदार अपनी लेबर को पाठ पढ़ा कर श्रम आयुक्त के दरबार में एक एक कर के भेजने लगे। बोलना मजदूरी १८० रूपये मिलती है। ८ घंटे की ड्यूटी है। " लेकिन आप तो १३० रूपये दिहाड़ी देते हो " - लेबर बोला। बाद में देखेंगे , अभी जो कहा है वही कर।

तोते की तरह श्रम आयुक्त के सामने जो पढाया गया था मजदूर बोल आए। पूछने पर जवाब मिला ऐसा न करते तो ठेकेदार काम से हटा देता और मैं सोच .........