खबर आयी है ... छप्पर अचानक फंट गया यारो,
के बिन बादल अचानक खूब मेहर बरसी है यारों,
गिला कैसा कि फिर बंटी पंचों को सौगात है यारों.
जितनी झोली थी मिली उतनी ही सौगात है यारों.
खुदा का शुक्रिया कर दो अदा, कुछ जश्न हो जाए,
सुरूर छा जाये फिजा पर... हवा में जाम लहरायें.
बुधवार, 24 मार्च 2010
javaabdehi............
हर साल योजनाओं के नाम पर सरकार द्वारा
आबंटित धन का कितना बड़ा हिस्सा अनुपयोगी
रह जाता है और कितना दुरुपयोग का शिकार हो
जाता है यह देखने की सरकारें जहमत नहीं उठाती
और विदेशों से ऋण लेती हैं..... योजनाओं के लिए
स्वीकृत धनराशी घोषित लक्ष्य के अनुरूप हो रही
है या नहीं ..... वे यह देखने की जहमत नहीं उठाती.
योजनायें बनाना ही काफी नहीं है... उन पर अमल
की प्रक्रिया भी हर स्तर पर पारदर्शी, लक्ष्यबद्ध और
जवाबदेही से पूर्ण होनी चाहिए.
आबंटित धन का कितना बड़ा हिस्सा अनुपयोगी
रह जाता है और कितना दुरुपयोग का शिकार हो
जाता है यह देखने की सरकारें जहमत नहीं उठाती
और विदेशों से ऋण लेती हैं..... योजनाओं के लिए
स्वीकृत धनराशी घोषित लक्ष्य के अनुरूप हो रही
है या नहीं ..... वे यह देखने की जहमत नहीं उठाती.
योजनायें बनाना ही काफी नहीं है... उन पर अमल
की प्रक्रिया भी हर स्तर पर पारदर्शी, लक्ष्यबद्ध और
जवाबदेही से पूर्ण होनी चाहिए.
शनिवार, 20 मार्च 2010
ab guzarish kaisi..........
इक गुज़ारिश ही जब ना पूरी हुई,
दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
नाव भला भंवर से बचती कैसे.
यूँ तो हर कोई तेरे साथ की चाहत है लिए,
पर तेरा साथ कोई खुश-नसीब पायेगा.
रज़ा तेरी जहाँ होगी खिलेंगे फूल वहीँ,
रश्क से ये जहाँ खुद ही जल जायेगा.
दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
नाव भला भंवर से बचती कैसे.
यूँ तो हर कोई तेरे साथ की चाहत है लिए,
पर तेरा साथ कोई खुश-नसीब पायेगा.
रज़ा तेरी जहाँ होगी खिलेंगे फूल वहीँ,
रश्क से ये जहाँ खुद ही जल जायेगा.
सोमवार, 15 मार्च 2010
Jan dayitva vidheyak...... Ek nazar....
जन दायित्व विधेयक सरकार आज संसद में पेश करेगी.
क्या है ये... परमाणु संयंत्र उपलब्ध कराने वाली
अमेरिकी कंपनियों को सरकार इस विधेयक के जरिये
परमाणु दुर्घटना की हालत में कुल मुआवज़े की राशि
को ५०० करोड़ तक सीमित कर देना चाहती है. किसी
भी सूरत में परमाणु सयंत्र चलाने वाली कम्पनी को
५०० करोड़ से ज्यादा मुआवजा नहीं देना पड़ेगा.कम्पनी
की सीमा के बाहर की राशी का भुगतान भारत सरकार
करेगी. जब तक ऐसा नहीं होगा अमेरिकी कम्पनियाँ
भारत में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र नहीं
लगाएंगी.
सवाल है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में होनेवाले
नुकसान को सीमित क्यों किया जाए. तथ्य ये है कि
१९८४ में हुए भोपाल गैस काण्ड में मिली रकम का ये
एक चौथाई भी नहीं है. क्या भारतीयों की जान की
कीमत सरकार की नज़र में सस्ती है.
खुद अमेरिका ने अपने देश की कंपनियों को ये छूट
नहीं दे रखी है.वहां प्राईस anderson एक्ट १९५६ के
जरिये परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवज़े का प्रावधान
किया गया है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती.
दुर्घटना की स्थिति में हमारी अदालत का फैसला होगा
लेकिन उस पर अमल अमेरिकी सरकार करवाएगी.
अमेरिका इस मामले में कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा
इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी
के लिए ज़िम्मेदार कम्पनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख
वारेन एंडरसन को भारत की तमाम कोशिशों व अदालती
वारंट के बावज़ूद आजतक भारत को सौंपा नहीं गया है.
प्रस्तावित विधेयक में ये भी कहा गया है कि दुर्घटना होने
पर सम्बंधित कम्पनी कि ज़िम्मेदारी महज दस साल तक
ही सीमित होगी. जबकि सब जानते हैं कि विकिरण के कारण
कई पीढियां तक प्रभावित हो जाती हैं.
ओबामा प्रशासन बाग़-बाग़ है कि भारत सरकार के इस फैसले
से अमेरिका के लिए नौकरियों के स्त्रोत खुलेंगे और उनकी
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाला ही
उसकी भरपाई करेगा. ऐसे में सरकार कैसे मुआवज़े और भरपाई
की सीमा तय कर सकती है.
ये विधेयक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक अहम् सुरक्षा
कवच होगा. सरकार इस जनविरोधी विधेयक को जन
दायित्व विधेयक के नाम से संसद में लाना चाहती है...
संसद में और संसद के बाहर इसका विरोध होना ज़रूरी
है. आप क्या सोचते हैं..... आपके विचार आमंत्रित हैं.
क्या है ये... परमाणु संयंत्र उपलब्ध कराने वाली
अमेरिकी कंपनियों को सरकार इस विधेयक के जरिये
परमाणु दुर्घटना की हालत में कुल मुआवज़े की राशि
को ५०० करोड़ तक सीमित कर देना चाहती है. किसी
भी सूरत में परमाणु सयंत्र चलाने वाली कम्पनी को
५०० करोड़ से ज्यादा मुआवजा नहीं देना पड़ेगा.कम्पनी
की सीमा के बाहर की राशी का भुगतान भारत सरकार
करेगी. जब तक ऐसा नहीं होगा अमेरिकी कम्पनियाँ
भारत में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र नहीं
लगाएंगी.
सवाल है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में होनेवाले
नुकसान को सीमित क्यों किया जाए. तथ्य ये है कि
१९८४ में हुए भोपाल गैस काण्ड में मिली रकम का ये
एक चौथाई भी नहीं है. क्या भारतीयों की जान की
कीमत सरकार की नज़र में सस्ती है.
खुद अमेरिका ने अपने देश की कंपनियों को ये छूट
नहीं दे रखी है.वहां प्राईस anderson एक्ट १९५६ के
जरिये परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवज़े का प्रावधान
किया गया है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती.
दुर्घटना की स्थिति में हमारी अदालत का फैसला होगा
लेकिन उस पर अमल अमेरिकी सरकार करवाएगी.
अमेरिका इस मामले में कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा
इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी
के लिए ज़िम्मेदार कम्पनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख
वारेन एंडरसन को भारत की तमाम कोशिशों व अदालती
वारंट के बावज़ूद आजतक भारत को सौंपा नहीं गया है.
प्रस्तावित विधेयक में ये भी कहा गया है कि दुर्घटना होने
पर सम्बंधित कम्पनी कि ज़िम्मेदारी महज दस साल तक
ही सीमित होगी. जबकि सब जानते हैं कि विकिरण के कारण
कई पीढियां तक प्रभावित हो जाती हैं.
ओबामा प्रशासन बाग़-बाग़ है कि भारत सरकार के इस फैसले
से अमेरिका के लिए नौकरियों के स्त्रोत खुलेंगे और उनकी
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाला ही
उसकी भरपाई करेगा. ऐसे में सरकार कैसे मुआवज़े और भरपाई
की सीमा तय कर सकती है.
ये विधेयक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक अहम् सुरक्षा
कवच होगा. सरकार इस जनविरोधी विधेयक को जन
दायित्व विधेयक के नाम से संसद में लाना चाहती है...
संसद में और संसद के बाहर इसका विरोध होना ज़रूरी
है. आप क्या सोचते हैं..... आपके विचार आमंत्रित हैं.
शनिवार, 13 मार्च 2010
Let's uncomplicate...... Dimple Kapadia.
१२ मार्च के एच टी सिटी में डिम्पल कपाड़िया
का रिलेशनशिप पर लेख पढ़ा. एक सुखद आश्चर्य
हुआ. अदाकारी और खूबसूरती फिल्मों में तो खूब
देखी थी.... लेकिन लेख पढ़ने के बाद तो वैचारिक
खूबसूरती के भी दर्शन हुए. किसी शायर की ये
पंक्तियाँ बरबस याद आ गयी...
"ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
बहुत मुमकिन है तुझे किन्ही खराबों में मिले"
उतार-चढ़ावों से भरपूर जिंदगी जीनेवाली डिम्पल
के.... संबंधों पर विचार सुलझे हुए और मार्गदर्शक
हैं. वे लिखती हैं... "Lets give ourselves a chance
again, a chance to reconnect with people, a
chance to forge relationships and be happy.
These are the people who matter; they are
in our thoughts, in our minds & in our hearts.
We should not take them for granted because
if we loose them..... it could be too late.
Never apologise for showing your feelings.
When you do so,you apologise for expressing
the truth. People we love are special and we
should never apologise for trying to reconnect
with them."
This column will appear every Friday in HT City.
Anybody can send their real life stories to.....
dimple.kapadia@hindustantimes.com & she
may help you reunite with your loved ones.
Her film, तुम मिलो तो सही releases on April 2.
का रिलेशनशिप पर लेख पढ़ा. एक सुखद आश्चर्य
हुआ. अदाकारी और खूबसूरती फिल्मों में तो खूब
देखी थी.... लेकिन लेख पढ़ने के बाद तो वैचारिक
खूबसूरती के भी दर्शन हुए. किसी शायर की ये
पंक्तियाँ बरबस याद आ गयी...
"ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
बहुत मुमकिन है तुझे किन्ही खराबों में मिले"
उतार-चढ़ावों से भरपूर जिंदगी जीनेवाली डिम्पल
के.... संबंधों पर विचार सुलझे हुए और मार्गदर्शक
हैं. वे लिखती हैं... "Lets give ourselves a chance
again, a chance to reconnect with people, a
chance to forge relationships and be happy.
These are the people who matter; they are
in our thoughts, in our minds & in our hearts.
We should not take them for granted because
if we loose them..... it could be too late.
Never apologise for showing your feelings.
When you do so,you apologise for expressing
the truth. People we love are special and we
should never apologise for trying to reconnect
with them."
This column will appear every Friday in HT City.
Anybody can send their real life stories to.....
dimple.kapadia@hindustantimes.com & she
may help you reunite with your loved ones.
Her film, तुम मिलो तो सही releases on April 2.
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
ik guzarish.........
मैंने प्यार किया तुझसे सजना,
तुझको सारी दुनिया प्यारी,
दो पल के साथ को तरसाए,
तू ही है मेरी दुनिया सारी.
आ पास मेरे कुछ बात करें,
रिश्ते को कुछ गर्माहट दें,
कुछ वक़्त निकालें फिर अपना,
फिर प्यार में ही खो जाने दें.
तुझको सारी दुनिया प्यारी,
दो पल के साथ को तरसाए,
तू ही है मेरी दुनिया सारी.
आ पास मेरे कुछ बात करें,
रिश्ते को कुछ गर्माहट दें,
कुछ वक़्त निकालें फिर अपना,
फिर प्यार में ही खो जाने दें.
सोमवार, 8 मार्च 2010
ab door kahin........
दिल जो चाहे कि जी भर के तुझे प्यार करूँ,
वक़्त कमबख्त कितनी दूर किये देता है,
फ़र्ज़ की डोर खींच लेती है तुझसे दूर,
हर इक लम्हा मुझे तन्हा-सा किये देता है.
आ के अब दूर कहीं साथ साथ चलते हैं ,
यही ख़याल अब कितना सुकून देता है.
वक़्त कमबख्त कितनी दूर किये देता है,
फ़र्ज़ की डोर खींच लेती है तुझसे दूर,
हर इक लम्हा मुझे तन्हा-सा किये देता है.
आ के अब दूर कहीं साथ साथ चलते हैं ,
यही ख़याल अब कितना सुकून देता है.
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
didar ki hasrat liye........
जिंदगी यूँ तो पल-पल सरकती जाती है,
तेरी यादों के पल ही क्यूं ठहर जाते हैं,
अब तो होठों से नगमे भी यार रुसवा हैं,
तेरी जुदाई में इक आस फिर जगाते हैं.
आ के अब फिर से दे दीदार इक बार,
वरना यादों की महफ़िल फिर सजाते हैं.
तेरी यादों के पल ही क्यूं ठहर जाते हैं,
अब तो होठों से नगमे भी यार रुसवा हैं,
तेरी जुदाई में इक आस फिर जगाते हैं.
आ के अब फिर से दे दीदार इक बार,
वरना यादों की महफ़िल फिर सजाते हैं.
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