हर साल योजनाओं के नाम पर सरकार द्वारा
आबंटित धन का कितना बड़ा हिस्सा अनुपयोगी
रह जाता है और कितना दुरुपयोग का शिकार हो
जाता है यह देखने की सरकारें जहमत नहीं उठाती
और विदेशों से ऋण लेती हैं..... योजनाओं के लिए
स्वीकृत धनराशी घोषित लक्ष्य के अनुरूप हो रही
है या नहीं ..... वे यह देखने की जहमत नहीं उठाती.
योजनायें बनाना ही काफी नहीं है... उन पर अमल
की प्रक्रिया भी हर स्तर पर पारदर्शी, लक्ष्यबद्ध और
जवाबदेही से पूर्ण होनी चाहिए.
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