सोमवार, 15 मार्च 2010

Jan dayitva vidheyak...... Ek nazar....

जन दायित्व विधेयक सरकार आज संसद में पेश करेगी.
क्या है ये... परमाणु संयंत्र  उपलब्ध कराने वाली 
अमेरिकी कंपनियों को सरकार इस विधेयक के जरिये 
परमाणु दुर्घटना की हालत में कुल मुआवज़े की राशि 
को ५०० करोड़ तक सीमित कर देना चाहती है. किसी 
भी सूरत में परमाणु सयंत्र चलाने वाली कम्पनी को 
५०० करोड़ से ज्यादा मुआवजा नहीं देना पड़ेगा.कम्पनी 
की सीमा के बाहर की राशी का भुगतान भारत सरकार 
करेगी. जब तक ऐसा नहीं होगा अमेरिकी कम्पनियाँ 
भारत में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु संयंत्र नहीं 
लगाएंगी.
सवाल है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में होनेवाले 
नुकसान को सीमित क्यों किया जाए. तथ्य ये है कि
१९८४ में हुए भोपाल गैस काण्ड में मिली रकम का ये 
एक चौथाई भी नहीं है. क्या भारतीयों की जान  की 
कीमत सरकार की नज़र में सस्ती है.
खुद अमेरिका ने अपने देश की कंपनियों को ये छूट 
नहीं दे रखी है.वहां प्राईस anderson  एक्ट १९५६ के 
जरिये परमाणु दुर्घटना होने पर मुआवज़े का प्रावधान 
किया गया है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती.
दुर्घटना की स्थिति में  हमारी अदालत का फैसला होगा 
लेकिन उस पर अमल अमेरिकी सरकार करवाएगी. 
अमेरिका इस मामले में कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा 
इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी 
के लिए ज़िम्मेदार कम्पनी यूनियन कार्बाइड  के प्रमुख 
वारेन एंडरसन को भारत की तमाम कोशिशों व अदालती 
वारंट के बावज़ूद आजतक भारत को सौंपा नहीं गया है.
प्रस्तावित विधेयक में ये भी कहा गया है कि दुर्घटना होने 
पर सम्बंधित कम्पनी कि ज़िम्मेदारी महज दस साल तक 
ही सीमित होगी. जबकि सब जानते हैं कि विकिरण के कारण 
कई पीढियां तक प्रभावित हो जाती हैं.
ओबामा प्रशासन बाग़-बाग़ है कि भारत सरकार के इस फैसले 
से अमेरिका के लिए नौकरियों के स्त्रोत खुलेंगे और उनकी 
अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी. 
 सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि प्रदूषण फ़ैलाने वाला ही 
उसकी भरपाई करेगा. ऐसे में सरकार कैसे मुआवज़े और भरपाई 
की सीमा तय कर सकती है.
ये विधेयक अमेरिकी कंपनियों के लिए एक अहम् सुरक्षा 
कवच होगा. सरकार इस जनविरोधी विधेयक को जन 
दायित्व विधेयक के नाम से संसद में लाना चाहती है...
संसद में और संसद के बाहर इसका विरोध होना ज़रूरी 
है. आप क्या सोचते हैं.....  आपके विचार आमंत्रित हैं. 

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