गुरुवार, 16 जून 2011

saavdhan... ye daur hai vyavastha-parivartan ka.......

अनशन, रैलियां, केंडिल-मार्च अख़बारों की सुर्ख़ियों में हर रोज़ छाये रहते हैं.
प्रश्न घोटालों का हो या भ्रष्टाचार का, जनमानस को इस दौर में उद्वेलित किये हुए है. एक तरफ जनता की आवाज़ के रूप में गाँधीवादी अन्ना हजारे हैं तो दूसरी ओर यू पी ए की सरकार है. जन-लोकपाल विधेयक को लेकर दोनों ओर से आने वाले बयानों में अन्ना हजारे पक्ष जनता में अधिक विश्वसनीयता प्राप्त कर रहा है. सरकारी प्रवक्ता जनता के मूड को भांप कर भी अपना वाक़-चातुर्य दिखाते हुए जनता को भ्रमित करने की लगातार कोशिश जारी रखे हुए हैं. अच्छा होगा इस काम को और बड़े पैमाने पर करें.
जनता उन चेहरों को पहचाने तो सही जो इस भ्रष्ट व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं. जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने घोटाले कर जनता के साथ छल किया है, लोकतंत्र का मजाक बनाया है. आज वही लोक इस तंत्र यानि सरकार के सामने सवाल खड़े कर रहा है तो सरकार बेचैनी अनुभव कर रही है. समय की मांग है कि इमानदार प्रयासों से भ्रष्टाचार उन्मूलन की कोशिश की जाये और भ्रष्ट-व्यवस्था  के पैरवीकारों को पहचान कर किनारे कर दिया जाये. सन २०१४ के चुनावों तक का समय दोनों पक्षों में तना-तनी का रहनेवाला है. अगला चुनाव काले धन की वापसी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही लड़ा जाने वाला है.