शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

Zindgi......Ek khamosh safar

जिंदगी ... इक खामोश सफ़र जारी रहे,
बेचैन तनहाइयों का ये सफ़र जारी रहे, 
तलाश मेरी थी पर इनायत तुझ पे हुई,
पिरोकर शब्दों के मोती ये सफ़र जारी रहे.
     गुदगुदाता सा इक एहसास दिल को छू जाये,
     नज़र से दूर....... है पर लफ्जों में नज़र आये,
     जिस्म बेमानी लगे,  रूह को करार आ जाये,
      एक विरहन को जैसे उसका सजन मिल जाये,
ऐसी कविता में इक रवानी है,
भाव-सौंदर्य है....... जवानी है,
खुबसूरत-सी अनुभूतियों के हैं मंज़र,
रोपे हैं लफ्ज़ ऐसे... जैसे बागवानी है.

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

waqt mil jaye.....

वक़्त मिल जाये भी तो रचनात्मकता के लिए 
कल्पना कि उड़ान कहाँ मिलती है. एक तन्हाई 
कि तलाश बनी ही रहती है. अवरोध-व्यवधान
आते ही रहते हैं. फिर भी ये दिल कहाँ मानता 
है. आज वंदना गुप्ता जी का ब्लॉग पढने का 
अवसर मिला. रचनात्मकता के लिए कितना 
वक़्त निकाल लेती हैं आप. धन्य हैं आप.
फिर मिलेंगे आपके ब्लॉग पर.

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

bas youn hi......

आज के बच्चों को हम क्या समझायें,
ये समझते हैं कि... समझदार हैं ये  ,
अपनी मंजिल पे निगाह रखते हैं ये,
अपनी आदतों से भी लाचार हैं ये.
...................................................
किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता, 
जहां में हूँ फरिश्तों से वहाँ आया नहीं जाता,
मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मखसूस होते हैं,
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता.
 

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

ik bebasi........

या रब ना वो समझे हैं ... ना समझेंगे मेरी बात....
एहसास की वादी में सन्नाटा सा बहुत है........


इक दर्द सा क्यूं है सीने में, तेरी आँख का आंसू पीने में,
जिसे ख़ुशी तूने देनी चाही, वोही कांटे  चुभोये सीने में.


वक़्त की नजाकत का  जो एहसास नहीं है,
फेर समझ का है.. और दिल पास नहीं है,
चाहा था के खुशियों से झोली तेरी भर दूं,
फटकार के सिवा कुछ क्या तेरे पास नहीं है.

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

We are with SRK.

राहुल गाँधी कि सफल मुंबई यात्रा के बाद अब शाहरुख को support कीजिये. 
शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को बता दीजिये कि
मुंबई केवल मराठियों की नहीं समस्त भारतीयों की है. मुंबई प्रशासन को 
'माय  नेम इज खान' की रिलीज़ के समय चौकस इन्तेजाम रखने होंगे जैसे 
राहुल गाँधी की यात्रा में किये गए ताकि शिवसेना और राज ठाकरे के कार्यकर्त्ता 
फिल्म प्रदर्शन में कोई बाधा ना पहुंचा सके. अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता को बचाए 
रखने के लिए ये ज़रूरी है. 

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

aawaaz buland karo

शिव सैनिकों द्वारा शाहरुख़ को पाकिस्तान जाने के लिए कहना और 
मुंबई को केवल मराठियों के लिए मानना .....  शिवसेना का जनता 
की भावनाओं को भड़काकर अपना वोट बैंक मज़बूत करना है......
शिवसेना के वर्चस्व से वाकिफ होते हुए भी सचिन ने मुंबई की आई 
पी एल टीम का नाम मुंबई indians रखा तो इसकी एक वज़ह मराठियों 
को भी भारतीय पहचान देना था. आज शिवसेना कभी शाहरुख़, कभी
राहुल गाँधी के विरोध में खड़ी है तो मुंबई के सभी भारतीयों को अपनी 
आवाज़ शिवसेना के विरोध में बुलंद करनी होगी. ये सन्देश देना होगा 
कि मुंबई में रहने वाले मराठी .... भारतीय पहले हैं फिर मराठी हैं.

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

bikhrav ki bayar....

आज तेलंगाना राज्य के समर्थन में आन्दोलन फिर उग्र हो गया... सरदार पटेल ने
सन १९४७ में तीन सौ से ज्यादा रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत का निर्माण
किया था... लेकिन अब लगता  है कि भारत के बिखराव में ही राजनीतिकों की
दिलचस्पी रह गयी है....झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराँचल, और अब तेलंगाना.....
लिस्ट बढती ही जानी है. चौधरी अजित सिंह को हरित प्रदेश चाहिए ... मायावती
पश्चिमांचल और बुंदेलखंड की बात कर रही हैं तो दार्जिलिंग को गोरखालैंड चाहिए.
देखिये राजनीतिकों के स्वार्थ भारत के कितने टुकड़े करते हैं...?
यदि हर सांसद अपने क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाये और जनता की ज़रूरतों को ध्यान में
रखते हुए योजनाओं को क्रियान्वित करे तो भारत की अखंडता बनी रह सकती है......

yogyataon ka mol do kaudi

जनसत्ता एक फ़रवरी अंक  में शंकर शरण जी का उपरोक्त शीर्षक से लेख पड़ा.
सही कहा है......देश की अनेक समस्याओं का समाधान इस छोटे से सूत्र में है- 
सही स्थान पर सही व्यक्ति...यह पात्रता का अमोघ सिद्धांत है.  नियम, अधिकार,
धन, तकनीक आदि सब मनुष्य द्वारा चालित होते हैं. अपने आप में वे कुछ नहीं 
होते. इसलिए किसी विषय पर मात्र कानून पर कानून बना देने से कोई अंतर नहीं पड़ता.
मानवीय तत्त्व को भुला कर हम समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं. इसीलिए विफल होते हैं.


कोई उत्तरदायित्व देने से पहले पात्रता ना देखना  ही समस्या का मूल है.
किसी भी नियुक्ति से पहले  उम्मीदवार की चारित्रिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक 
क्षमताओं की जांच परख की जानी चाहिए. केवल औपचारिक योग्यता, डिग्री, कागज़ 
या सिफारिश से संतोष नहीं करना चाहिए. 
देश की समस्याओं से निबटने  के लिए नागरिक प्रशासन, शिक्षा, आंतरिक सुरक्षा,
विदेश नीति संचालन आदि के महत्वपूर्ण स्थानों पर हमेशा योग्य, चरित्रवान और 
निर्भीक व्यक्तियों की नियुक्तिओं की परिपाटी बनानी होगी. अगर इसे टाला गया तो 
समय  के साथ सब कुछ ना केवल असुरक्षित ही रहेगा. पतन का कारण भी बनेगा.


अपने मित्र रविराज जी के शब्दों में कहें तो.... "गधों को जलेबियाँ मत खिलाओ."