शनिवार, 20 मार्च 2010

ab guzarish kaisi..........

इक गुज़ारिश ही जब ना पूरी हुई, 
दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
नाव भला भंवर से बचती कैसे.

यूँ तो हर कोई तेरे साथ की चाहत है लिए,
पर तेरा साथ कोई खुश-नसीब पायेगा.
रज़ा तेरी जहाँ होगी खिलेंगे फूल वहीँ,
रश्क से ये जहाँ खुद ही जल जायेगा.

2 टिप्‍पणियां:

  1. इक गुज़ारिश ही जब ना पूरी हुई,
    दूसरी गुज़ारिश भला होती कैसे.
    खुदा ही साथ ना दे जब अपना,
    नाव भला भंवर से बचती कैसे.

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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