गुरुवार, 28 जनवरी 2010

talash-e- tanhai

किसी शायर ने कहा था,
"जिंदगी की राहों में रंजो-गम के मेले हैं,
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं."
लाख दोस्त-यार हों, हमराज़ हों, हमसफ़र हों या इक जीवन साथी.
दिल का कोई कोना फिर भी खाली क्यों रह जाता है.....
ये अकेलापन सबके साथ होने पर भी सिर्फ खुद तक क्यों सिमट के
रह जाता है.
तन्हाई भी अजब चीज़ है........ये  हो तो दिल घबराता है.
ना हो तो दिल इसे ढूंढता है. कितने रंग हैं इसके... किसी शायर से,
किसी कवि या लेखक से पूछो.
हम तन्हाई तलाश करते हैं खुद को संगीत में डुबोने के लिए.
 पर ये भी हर रोज़ कहाँ मिलती है.

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