राजनीतिकों द्वारा क्या-क्या हथकंडे टेंडरों को हथियाने के लिए अपनाए
जाते हैं ... प्रत्यक्ष अनुभव किया ... किसी कवि की लिखी हुई पंक्तिया अनायास
ही याद आ गई - "आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं,
महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी" .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें