शनिवार, 23 जनवरी 2010

Dhanyavaad Hydrabad

वाह रे हैदराबाद ...... इस बार क्या अनुभव दिया है जो हमेशा याद रहेगा...
राजनीतिकों द्वारा क्या-क्या हथकंडे टेंडरों को हथियाने के लिए अपनाए
जाते हैं ... प्रत्यक्ष अनुभव किया ... किसी कवि की लिखी हुई पंक्तिया अनायास
ही याद आ गई - "आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं,
                        महवे-हैरत हूँ ये दुनिया क्या से क्या हो जायेगी" .

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