मंगलवार, 3 नवंबर 2009

फिर तेरी याद आयी......

आज मुद्दतों बाद फिर तेरी याद आयी। जगजीत सिंह की ग़ज़ल जो तुम्हारी भी मनपसंद हुआ करती थी... आज सुन रहा था। "ये दौलत भी ले लो.. ये शोहरत भी ले लो "....... दूसरी ग़ज़ल .... अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको , मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको....... फिर वोही लम्हे बड़ी शिद्दत से याद आए।
यादें भी अपने साथ बहा ले जाती हैं।
मिलोगे कभी तो जुदाई का सबब पूछेंगे, क्या यही तकदीर थी मेरी... ज़रूर पूछेंगे।
जुदा होना था गर हमको तो हम मिले क्यूं the ek baar tumse zaroor puchhenge.

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