शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

sannata

प्रभाष जी पर पुण्य प्रसून वाजपेयी का लेख जनसत्ता के १९ नवम्बर के दैनिक में पढ़े . पत्रकारिता जगत में सत्य पर पैसे के वर्चस्व के खिलाफ अब कौन आवाज़ उठाने जा रहा है . वाजपेयी जी ने ठीक ही लिखा है ..... "अन्दर के दर्द को हम आपस में कह-सुन कर बाँट लेंगें पर बाहर जो सन्नाटा पसरा हुआ है उसे कौन तोड़ेगा ".... राजनीतिक आज़ादी के ६२ वर्षों बाद भी आर्थिक गुलामी की जंजीरों को हम तोड़ नहीं पायें हैं. उद्योगपति, राजनेता और भ्रष्ट नौकरशाह मिलकर जनता के शोषण में लगे हुए हैं. जिन पत्रकारों को जनता के सामने सच्चाई लानी चाहिए वो पैसा लेकर अपनी कलम को गिरवी रख रहें हैं. ऐसे हालात में प्रभाष जी एक अलख जगा रहे थे. पत्रकारों की नयी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की तरह दिशा निर्देशन कर रहे थे........ क्या प्रभाष जी पर ऐसे और जानकारी देनेवाले लेख या कोई पुस्तक मिलेगी ...... अब तलाश शुरू होती है..... सत्य की खोज ........ सत्य को जीना ... यही प्रभाष जी को सच्ची श्रधांजलि होगी ............

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