2011 में राजनीतिक विश्लेषक कयास लगा रहे थे कि 2014 का चुनाव भ्रष्टाचार और काले धन की विदेशों से वापसी पर लड़ा जाएगा। मोदी जी ने इसे विकास के नाम पे लड़ना चाहा लेकिन कांग्रेस ने धर्म-निरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता बनाने की कोशिश की है। यह तो चुनाव का रिज़ल्ट बताएगा की जनता ने किस मुद्दे को अपना समर्थन दिया है ।
मंगलवार, 6 मई 2014
सोमवार, 16 दिसंबर 2013
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
बुधवार, 10 अगस्त 2011
august kranti
हर साल १९४२ की अगस्त क्रांति को यूँ तो रस्मी-तौर पर याद किया जाता है. लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में इस समय जो माहौल बन रहा है, हमें इतिहास पर नज़र डालने की ज़रूरत है. २७ अप्रैल १९४२ को कांग्रेस कार्य समिति में रखा था वो आज के माहौल में सर्वाधिक प्रासंगिक है. इसमें कहा गया है -" बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का प्रश्न ब्रिटिश शासन की उपज है. और अंग्रेजों के यहाँ से जाते ही यह प्रश्न भी समाप्त हो जायेगा. सम्पूर्ण स्वाधीनता से कम किसी भी चीज़ से मैं संतुष्ट होने वाला नही." प्रस्ताव काफी लम्बा है... मगर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम और अन्य जनांदोलनों को एक मंच पर लाकर 'संपूर्ण स्वाधीनता' की दिशा में निर्णायक कदम उठाने की ज़रूरत है.
रविवार, 3 जुलाई 2011
kuchh sawal.........
लोकपाल बिल पर अन्ना हजारे की राजनीतिक दलों से मुलाकात के क्रम में सोनिया गाँधी से मुलाकात शनिवार को हुई. अन्ना साहेब ने मुलाकात के बाद कहा कि लोकपाल विधेयक का सही मसविदा ही संसद में पेश किया जाना चाहिए. संसद जो भी फैसला करेगी हम उसका सम्मान करेंगे.
जो सांसद चुने जाने के बाद स्वयं को लोक-सेवक नहीं शासक मानते हैं, और जिनके रहते भ्रष्टाचार ने संस्थागत विकराल रूप धारण किया.. क्या अन्ना हजारे उन सांसदों का जो भी फैसला हो, स्वीकार करेंगे ? क्या आम जनता भी इसके लिए तैयार है ? भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम शुरू हुई है, जनता जिस व्यवस्था-परिवर्तन कि आस में है .. क्या वो आस संसद की दहलीज़ पर ही दम तोड़ देगी ? भ्रष्टाचार की सर्व-ग्राह्यता, व्यापकता इस लड़ाई को लम्बा बनाने जा रही है. संभवतः सन २०१४ के चुनाव इसी मुद्दे पर लड़े जायेंगे और उससे पहले सभी राजनीतिक पार्टियों की लोकपाल बिल पर संसद में मिलने वाली प्रतिक्रिया जनता के सामने उनके रुख को अधिक स्पष्ट करके रख देगी. सभी प्रमुख राजनीतिक दल सत्ता में रह चुके हैं, और अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी दल ने दृढ-इच्छाशक्ति का अभी तक परिचय नहीं दिया है. लेकिन आने वाले वक़्त में दो कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहें हैं. १. जनता की भ्रष्टाचार को दूर करने की दृढ-इच्छा और २. सूचना तकनीक का प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए इस्तेमाल.
वक़्त रहते राजनीतिक दल जन-मानस की भावनाओं को समझ कर अगले चुनाव की तैयारी करें, ये एक मौका लोकपाल बिल संसद में उनको दे रहा है, जिस पर सारे देश की निगाहें रहेंगी. कौन इतिहास बनाता है और कौन-कौन इतिहास का हिस्सा बनता है, सब निकट भविष्य में स्पष्ट होने जा रहा है.
देखिये ज़रा ध्यान से इतिहास को बनते हुए और इसमें आपकी क्या भूमिका या योगदान होगा... विचार कीजिए.
गुरुवार, 16 जून 2011
saavdhan... ye daur hai vyavastha-parivartan ka.......
अनशन, रैलियां, केंडिल-मार्च अख़बारों की सुर्ख़ियों में हर रोज़ छाये रहते हैं.
प्रश्न घोटालों का हो या भ्रष्टाचार का, जनमानस को इस दौर में उद्वेलित किये हुए है. एक तरफ जनता की आवाज़ के रूप में गाँधीवादी अन्ना हजारे हैं तो दूसरी ओर यू पी ए की सरकार है. जन-लोकपाल विधेयक को लेकर दोनों ओर से आने वाले बयानों में अन्ना हजारे पक्ष जनता में अधिक विश्वसनीयता प्राप्त कर रहा है. सरकारी प्रवक्ता जनता के मूड को भांप कर भी अपना वाक़-चातुर्य दिखाते हुए जनता को भ्रमित करने की लगातार कोशिश जारी रखे हुए हैं. अच्छा होगा इस काम को और बड़े पैमाने पर करें.
जनता उन चेहरों को पहचाने तो सही जो इस भ्रष्ट व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं. जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने घोटाले कर जनता के साथ छल किया है, लोकतंत्र का मजाक बनाया है. आज वही लोक इस तंत्र यानि सरकार के सामने सवाल खड़े कर रहा है तो सरकार बेचैनी अनुभव कर रही है. समय की मांग है कि इमानदार प्रयासों से भ्रष्टाचार उन्मूलन की कोशिश की जाये और भ्रष्ट-व्यवस्था के पैरवीकारों को पहचान कर किनारे कर दिया जाये. सन २०१४ के चुनावों तक का समय दोनों पक्षों में तना-तनी का रहनेवाला है. अगला चुनाव काले धन की वापसी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही लड़ा जाने वाला है.
गुरुवार, 10 मार्च 2011
aa gale lag ke..........
आज तन्हाई तेरी यादों में डूबे जाती है,
आ गले लग के ख्वाब ही में मिल जा .
छाया है चारों तरफ अब वसंत का मौसम ,
कहीं फूलों की किसी बगिया में ही मिल जा.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)